डेली न्यूज़
21 Jun, 2021 51 min read
भूगोल
समुद्र जल स्तर में वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:पेरिस समझौता, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंजमेन्स के लिये: समुद्र जल स्तर में वृद्धि के कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण लक्षद्वीप द्वीप समूह के आसपास समुद्र का स्तर बढ़ जाएगा।
- यह हवाई अड्डे और उन आवासीय क्षेत्रों को प्रभावित करेगा जो वर्तमान में समुद्र तट के काफी करीब हैं।
- भारत का सबसे छोटा केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप एक द्वीपसमूह है जिसमें 36 द्वीप हैं इसका क्षेत्रफल 32 वर्ग किमी. है।
प्रमुख बिंदु:
समुद्री जल स्तर में वृद्धि (SLR):
- SLR जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण दुनिया के महासागरों के जल स्तर में हुई वृद्धि है, विशेष रूप से ग्लोबल वार्मिंग जो तीन प्राथमिक कारकों से प्रेरित है: तापीय विस्तार, ग्लेशियरों, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ पिघलना।
- समुद्र स्तर को मुख्य रूप से ज्वार स्टेशनों और ‘सैटेलाइट लेज़र अल्टीमीटर’ का उपयोग करके मापा जाता है।
SLR के प्राथमिक कारक:
- ऊष्मीय विस्तार: जब पानी गर्म होता है, तो वह फैलता है। पिछले 25 वर्षों में समुद्र के स्तर में वृद्धि का लगभग आधा हिस्सा गर्म महासागरों के कारण है जो अपेक्षाकृत अधिक स्थान घेरते हैं।
- ग्लेशियरों का पिघलना: ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप उच्च तापमान के कारण पर्वतीय हिमनद गर्मियों में अधिक पिघलते हैं।
- यह अपवाह और समुद्र के वाष्पीकरण के बीच असंतुलन पैदा करता है, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ जाता है।
- ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक बर्फ की चादरों को हानि: बढ़ी हुई गर्मी के कारण ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका को कवर करने वाली विशाल बर्फ की चादरें पर्वतीय ग्लेशियरों की तरह और अधिक तेज़ी से पिघल रही हैं तथा और समुद्र जल में भी तेज़ी सेवृद्धि हो रही है।
SLR की दर:
- वैश्विक स्वरूप: पिछली शताब्दी में वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि हुई है और हाल के दशकों में इसकी दर में तेज़ी आई है। वर्ष 1880 और 2015 के बीच औसत वैश्विक समुद्र स्तर 8.9 इंच बढ़ा है। यह पिछले 2,700 वर्षों की तुलना में बहुत तेज़ है।
- इसके अलावा ‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (IPCC) ने वर्ष 2019 में ‘द स्पेशल रिपोर्ट ऑन द ओशन एंड क्रायोस्फीयर इन ए चेंजिंग क्लाइमेट’ जारी की, जिसमें महासागरों, ग्लेशियरों और भूमि तथा समुद्र में बर्फ के जमाव में होने वाले गंभीर परिवर्तनों को रेखांकित किया गया।
- क्षेत्रीय: यह दुनिया भर में एक समान नहीं है। उपप्रवाह, अपस्ट्रीम बाढ़ नियंत्रण, कटाव, क्षेत्रीय महासागरीय धाराओं, भूमि की ऊँचाई में भिन्नता और हिमयुग के हिमनदों के संकुचित भार के कारण क्षेत्रीय SLR वैश्विक एसएलआर से अधिक या कम हो सकता है।
SLR के परिणाम:
- तटीय बाढ़: विश्व स्तर पर विश्व के 10 सबसे बड़े शहरों में से आठ एक तट के पास हैं, जिनको तटीय बाढ़ से खतरा है।
- तटीय जैव विविधता का विनाश: SLR विनाशकारी क्षरण, आर्द्रभूमि बाढ़, जलभृत और नमक के साथ कृषि मिट्टी संदूषण और जैव विविधता आवास के विनाश का कारण बन सकता है।
- खतरनाक तूफानों में वृद्धि: समुद्र का ऊँचा स्तर अधिक खतरनाक तूफानों का कारण बन रहा है जिससे जान-माल का नुकसान हो रहा है।
- पार्श्व और अंतर्देशीय प्रवासन: निचले तटीय क्षेत्रों में बाढ़ लोगों को उच्च भूमि पर प्रवास करने के लिये मजबूर कर रही है जिससे विस्थापन हो रहा है और बदले में दुनिया भर में शरणार्थी संकट पैदा हो रहा है।
- बुनियादी ढाँचे पर प्रभाव: उच्च तटीय जल स्तर की संभावना से इंटरनेट की पहुँच जैसी बुनियादी सेवाओं को खतरा है।
- अंतर्देशीय जीवन के लिये खतरा: बढ़ता समुद्र जल स्तर नमक के साथ मिट्टी और भूजल को दूषित कर सकता है।
- पर्यटन और सैन्य तैयारी: तटीय क्षेत्रों में पर्यटन और सैन्य तैयारी भी एसएलआर में वृद्धि के कारण नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी।
SLR से निपटने के लिये उठाए गए कदम:
- स्थानांतरण: कई तटीय शहरों ने पुनर्वास को एक शमन रणनीति के रूप में अपनाने की योजना बनाई है। उदाहरण के लिये किरिबाती द्वीप ने फिज़ी में स्थानांतरण की योजना बनाई है, जबकि इंडोनेशिया की राजधानी को जकार्ता से बोर्नियो स्थानांतरित किया जा रहा है।
- समुद्री दीवार का निर्माण: इंडोनेशिया की सरकार ने शहर को बाढ़ से बचाने के लिये वर्ष 2014 में एक विशाल समुद्री दीवार या “विशालकाय गरुड़” नामक एक तटीय विकास परियोजना शुरू की।
- बिल्डिंग एनक्लोज़र: शोधकर्ताओं ने उत्तरी यूरोपीय संलग्नक बाँध (NEED) का प्रस्ताव दिया है, जिसमें उत्तरी सागर के सभी 15 देशों को बढ़ते समुद्रों से बचाने के लिये शामिल किया गया है। फारस की खाड़ी, भूमध्य सागर, बाल्टिक सागर, आयरिश सागर और लाल सागर को भी ऐसे क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया जो समान मेगा बाड़ों से लाभान्वित हो सकते हैं।
- पानी के प्रवाह संचालन हेतु वास्तुकला: डच सिटी रॉटरडैम ने अस्थायी तालाबों के साथ “वाटर स्क्वायर” जैसी बाधाओं, जल निकासी और नवीन वास्तुशिल्प सुविधाओं का निर्माण किया।
भारत की भेद्यता:
- भारत की 7,516 किलोमीटर लंबी तटरेखा में मुख्य भूमि पर 5,422 किलोमीटर और नौ राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों के द्वीपों पर 2,094 किलोमीटर की तटरेखा शामिल है।
- समुद्र तट व्यापार देश के कुल व्यापार का 90% हिस्सा है और यह 3,331 तटीय गाँवों और 1,382 द्वीपों तक फैला है।
भारत के प्रयास:
- तटीय विनियमन क्षेत्र:
- समुद्र, खाड़ियों, नदियों और बैकवाटर के तटीय क्षेत्र जो उच्च ज्वार रेखा (HTL) से 500 मीटर तक के ज्वार से प्रभावित होते हैं और निम्न ज्वार रेखा (LTL) तथा उच्च ज्वार रेखा के बीच की भूमि को 1991 में तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) घोषित किया गया था।
- नवीनतम विनियमन ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते समुद्र के स्तर को भी ध्यान में रखता है।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना:
- इसे वर्ष 2008 में जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री परिषद द्वारा लॉन्च किया गया था।
- इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इसका मुकाबला करने के कदमों के बारे में जागरूकता पैदा करना है।
आगे की राह:
- पेरिस समझौता ग्लोबल वार्मिंग और SLR को सीमित करने पर एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्रदान करता है।
- इस दिशा में कुछ अन्य कदमों को भी शामिल किया जाएगा:
- जीवाश्म ईंधन से सौर, वन ऊर्जा जैसे स्वच्छ विकल्पों को अपनाना।
- उद्योगों पर कार्बन टैक्स लगाना और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिये सब्सिडी देना।
- मौजूदा ग्रीनहाउस गैसों को पकड़ने के लिये भू-इंजीनियरिंग और प्राकृतिक तरीकों जैसे पीटलैंड और आर्द्रभूमि क्षेत्रों को बहाल करना।
- वनों की कटाई को कम करना।
- जलवायु परिवर्तन पर अनुसंधान कार्यों को सब्सिडी देना।
स्रोत-पीआईबी
भारतीय राजनीति
चुनाव याचिका
प्रिलिम्स के लियेचुनाव याचिका, जनप्रतिनिधि अधिनियममेन्स के लियेचुनाव याचिका का महत्त्व और उससे संबंधित विभिन्न पक्ष |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र के विधानसभा चुनाव परिणाम को चुनौती देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक निर्वाचन अथवा चुनाव याचिका दायर की है।
प्रमुख बिंदु
निर्वाचन याचिका
- चुनाव परिणामों की घोषणा के पश्चात् चुनाव आयोग की भूमिका समाप्त हो जाती है, इसके पश्चात् यदि कोई उम्मीदवार मानता है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान भ्रष्टाचार अथवा कदाचार हुआ था तो चुनाव अथवा निर्वाचन याचिका उस मतदाता या उम्मीदवार के लिये उपलब्ध एकमात्र कानूनी उपाय है।
- ऐसा उम्मीदवार संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय में निर्वाचन याचिका के माध्यम से परिणामों को चुनौती दे सकता है।
- ऐसी याचिका चुनाव परिणाम की तारीख से 45 दिनों के भीतर दायर करनी होती है; इस अवधि की समाप्ति के पश्चात् न्यायालय द्वारा मामले की सुनवाई नहीं की जाती है।
- यद्यपि वर्ष 1951 के जनप्रतिनिधि अधिनियम (RPA) के मुताबिक, उच्च न्यायालय को छह माह के भीतर मुकदमे को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिये, हालाँकि इस प्रकार के मुकदमे प्रायः वर्षों तक चलते रहते हैं।
जिन आधारों पर निर्वाचन याचिका दायर की जा सकती है (RPA की धारा 100)
- चुनाव के दिन जीतने वाला उम्मीदवार चुनाव लड़ने के लिये योग्य नहीं था।
- चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार, उसके पोल एजेंट या जीतने वाले उम्मीदवार की सहमति से किसी अन्य व्यक्ति ने भ्रष्ट आचरण किया है।
- विजेता उम्मीदवार के नामांकन की अनुचित स्वीकृति या नामांकन की अनुचित अस्वीकृति।
- मतगणना प्रक्रिया में कदाचार, जिसमें अनुचित तरीके से मत प्राप्त करना, किसी भी मान्य वोट को अस्वीकार करना या किसी भी अमान्य वोट को स्वीकार करना शामिल है।
- संविधान या जनप्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधानों या आरपी अधिनियम के तहत बनाए गए किसी भी नियम या आदेश का पालन न करना।
यदि निर्णय याचिकाकर्त्ता के पक्ष में है (RPA की धारा 84)
- याचिकाकर्त्ता जीतने वाले उम्मीदवार के परिणाम को शून्य घोषित किये जाने की मांग कर सकता है।
- इसके अलावा याचिकाकर्त्ता न्यायालय से स्वयं को (यदि याचिका उसी उम्मीदवार द्वारा दायर की गई है) या किसी अन्य उम्मीदवार को विजेता या विधिवत निर्वाचित घोषित करने की मांग कर सकता है।
- इस तरह यदि चुनाव याचिका का निर्णय याचिकाकर्त्ता के पक्ष में होता है तो न्यायालय द्वारा नए सिरे से चुनाव आयोजित करने या एक नए विजेता की घोषणा की जा सकती है।
निर्वाचन याचिका का इतिहास
- इस संबंध में सबसे प्रसिद्ध मामला वर्ष 1975 का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय है, जिसके तहत चार वर्ष पूर्व (वर्ष 1971) रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से इंदिरा गांधी के चुनाव को भ्रष्ट आचरण के आधार पर रद्द कर दिया गया था।
जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951
- यह चुनावों और उपचुनावों के वास्तविक संचालन को नियंत्रित करता है।
- यह चुनाव आयोजित कराने के लिये प्रशासनिक मशीनरी भी प्रदान करता है।
- यह राजनीतिक दलों के पंजीकरण को भी नियंत्रित करता है।
- जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 123 में भ्रष्ट आचरण की एक विस्तृत सूची प्रदान की गई है, जिसमें रिश्वतखोरी, बल प्रयोग या ज़बरदस्ती अथवा धर्म, जाति, समुदाय और भाषा के आधार पर वोट की अपील करना आदि शामिल हैं।
- यह सदनों की सदस्यता के लिये योग्यता और अयोग्यता को भी निर्दिष्ट करता है।
- यह भ्रष्ट आचरण और अन्य अपराधों को रोकने का प्रावधान करता है।
- यह चुनावों से उत्पन्न होने वाले संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
भारत में फिल्मों की सेंसरशिप
प्रिलिम्स के लियेभारत में फिल्मों की सेंसरशिप, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड, भारत का सर्वोच्च न्यायालयमेन्स के लिये भारत में फिल्मों की सेंसरशिप लागू होने से पायरेसी के खतरे में कमी |
चर्चा में क्यों?
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने हाल ही में सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक [Cinematograph (Amendment) Bill], 2021 के अपने मसौदे पर सार्वजनिक टिप्पणी मांगी है, यह केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (Central Board of Film Certification) पर अपनी “संशोधन शक्तियों” को वापस लाने का प्रस्ताव करता है।
- नया विधेयक “बदले हुए समय के अनुरूप प्रदर्शन के लिये फिल्मों को मंज़ूरी देने की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बना देगा तथा पायरेसी के खतरे को भी रोकेगा”।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने नवंबर 2000 में कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा था, जिसने “बोर्ड द्वारा पहले से प्रमाणित फिल्मों के संबंध में केंद्र की पुनरीक्षण शक्तियों” को रद्द कर दिया था।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि विधानमंडल कुछ मामलों में उचित कानून बनाकर न्यायिक या कार्यकारी निर्णय को खारिज या रद्द कर सकता है।
मसौदा सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2021 का प्रावधान:
- पुनरीक्षण अधिकार प्रदान करना: सरकार सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 5बी(1) के उल्लंघन के कारण शिकायतों की प्राप्ति के बाद पहले से प्रमाणित फिल्म के संबंध में प्रमाणन बोर्ड को “पुन: परीक्षण (Re-Examination)” का आदेश दे सकती है।
- धारा 5बी(1) फिल्मों को प्रमाणित करने के मार्गदर्शक सिद्धांतों से संबंधित है। इसे संविधान के अनुच्छेद 19(2) से लिया गया है और गैर-परक्राम्य है।
- मौजूदा सिनेमैटोग्राफ अधिनियम (Cinematograph Act), 1952 की धारा 6 के तहत केंद्र को पहले से ही किसी फिल्म के प्रमाणन के संबंध में कार्यवाही के रिकॉर्ड की मांग करने और उस पर कोई आदेश पारित करने का अधिकार है।
- यदि आवश्यक हो तो केंद्र सरकार बोर्ड के निर्णय को उलटने की शक्ति रखती है।
- मौजूदा UA श्रेणी का उप-विभाजन: फिल्मों के प्रमाणन से संबंधित प्रावधान “अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शनी (U/A)” श्रेणी में संशोधन का प्रस्ताव है ताकि मौजूदा UA श्रेणी को U/A 7+, U/A 13+ और U/A 16+ जैसी आयु-आधारित श्रेणियों में उप-विभाजित किया जा सके।
- फिल्म पाइरेसी: ज़्यादातर मामलों में सिनेमा हॉल में अवैध दोहराव पाइरेसी का मूल बिंदु है। वर्तमान में सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 में फिल्म पायरेसी को रोकने के लिये कोई सक्षम प्रावधान नहीं है। मसौदा विधेयक धारा 6AA को सम्मिलित करने का प्रस्ताव करता है जो अनधिकृत रिकॉर्डिंग को प्रतिबंधित करता है।
- पायरेसी के लिये सज़ा: मसौदा कानून की धारा 6AA पायरेसी को दंडनीय अपराध बनाती है।
- तीन वर्ष तक के काFरावास की सज़ा और जुर्माने के साथ जो 3 लाख रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन यह ऑडिटेड सकल उत्पादन लागत का 5% या दोनों के साथ हो सकता है।
- पायरेसी के लिये सज़ा: मसौदा कानून की धारा 6AA पायरेसी को दंडनीय अपराध बनाती है।
- वर्ष 2013 की न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल समिति (Justice Mukul Mudgal Committee) और वर्ष 2016 की श्याम बेनेगल समिति (Shyam Benegal Committee) की सिफारिशों पर भी कानून का मसौदा तैयार करते समय विचार किया गया था।
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC):
- यह सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है, जो सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के प्रावधानों के तहत फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन को नियंत्रित करता है।
- बोर्ड में गैर-आधिकारिक सदस्य और एक अध्यक्ष (जिनमें से सभी केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किये जाते हैं) होता है और इसका मुख्यालय मुंबई में है।
- केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा प्रमाणित होने के बाद ही फिल्मों को भारत में (सिनेमा हॉल, टीवी चैनलों पर) सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जा सकता है।
- वर्तमान में फिल्मों को 4 श्रेणियों के तहत प्रमाणित किया जाता है: U, U/A, A & S।
- अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शनी (U)।
- अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शनी लेकिन सावधानी के साथ 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये माता-पिता के विवेक की आवश्यकता (U/A)।
- वयस्कों के लिये प्रतिबंधित (A)।
- व्यक्तियों के किसी विशेष वर्ग के लिए प्रतिबंधित (S)।
- सेंसरशिप के प्रावधान:
- संविधान का अनुच्छेद 19(2): इसके आधार पर राज्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार रखता है। युक्तियुक्त निर्बंधनों की घोषणा करता है-
- भारत की सुरक्षा व संप्रभुता
- मानहानि
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
- सार्वजनिक व्यवस्था
- शिष्टाचार या सदाचार
- न्यायालय की अवमानना
- सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 भी अनुच्छेद 19 (2) के तहत बताए गए समान प्रावधानों का प्रावधान करता है।
- संविधान का अनुच्छेद 19(2): इसके आधार पर राज्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार रखता है। युक्तियुक्त निर्बंधनों की घोषणा करता है-
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
हर्बिसाइड टॉलरेंट (HT) बीटी कॉटन
प्रिलिम्स के लिये:हर्बिसाइड टॉलरेंट (HT) बीटी कॉटनमेन्स के लिये:HTBT कपास से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हर्बिसाइड टॉलरेंट (HT) बीटी कपास की अवैध खेती में भारी उछाल देखा गया है क्योंकि अवैध बीज पैकेटों की बिक्री वर्ष 2020 के 30 लाख से बढ़कर वर्ष 2021 में 75 लाख हो गई है।
प्रमुख बिंदु:
बीटी कॉटन:
- बीटी कपास एकमात्र ट्रांसजेनिक फसल है जिसे भारत में व्यावसायिक खेती के लिये केंद्र द्वारा अनुमोदित किया गया है।
- कपास के बोलवर्म का एक सामान्य कीट का मुकाबला करने हेतु कीटनाशक का उत्पादन करने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) किया गया है।
हर्बिसाइड टॉलरेंट बीटी (HTBt) कपास:
- HTBt कपास संस्करण संशोधन की एक और परत को जोड़ता है, जिससे पौधा हर्बिसाइड ग्लाइफोसेट के लिये प्रतिरोधी बन जाता है, लेकिन नियामकों द्वारा इसे अनुमोदित नहीं किया गया है।
- आशंकाओं में ग्लाइफोसेट का कार्सिनोजेनिक प्रभाव होता है, साथ ही परागण के माध्यम से आस-पास के पौधों में जड़ी-बूटियों के प्रतिरोध का अनियंत्रित प्रसार होता है, जिससे विभिन्न प्रकार के सुपरवीड बनते हैं।
HTBt कपास का उपयोग करने की आवश्यकता:
- लागत में कमी: बीटी कपास के लिये कम-से-कम दो बार की निराई करने हेतु आवश्यक श्रम की कमी है।
- HTBt के साथ बिना निराई के केवल एक राउंड ग्लाइफोसेट छिड़काव की आवश्यकता होती है। यह किसानों के लिये 7,000 से 8,000 रुपए प्रति एकड़ की बचत करता है।
- वैज्ञानिकों का सहयोग: वैज्ञानिक भी इस फसल के पक्ष में हैं और यहाँ तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कहा है कि इससे कैंसर नहीं होता है।
- लेकिन सरकार ने अभी भी HTBt मंज़ूरी नहीं नहीं दी है।
एचटीबीटी कपास की अवैध बिक्री से उत्पन्न मुद्दे:
- चूँकि यह जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) द्वारा अनुमोदित नहीं है, इसलिये भारतीय बाज़ारों में इसकी अवैध बिक्री होती है।
- कपास के बीज की इस तरह की अवैध बिक्री से किसानों को खतरा है क्योंकि बीज की गुणवत्ता की कोई जवाबदेही नहीं है, यह पर्यावरण को प्रदूषित करता है, यह उद्योग वैध बीज बिक्री को खो रहा है और सरकार को कर संग्रह के मामले में राजस्व का भी नुकसान होता है।
- यह न केवल छोटी कपास बीज कंपनियों को नष्ट कर देगा बल्कि भारत में कानूनी कपास बीज के पूरे बाज़ार को भी खतरा होगा।
जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति:
- जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत कार्य करती है।
- यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुसंधान और औद्योगिक उत्पादन में खतरनाक सूक्ष्मजीवों तथा पुनः संयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग से जुड़ी गतिविधियों के मूल्यांकन के लिये ज़िम्मेदार है।
- GEAC की अध्यक्षता MoEF&CC का विशेष सचिव/अतिरिक्त सचिव करता है और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के एक प्रतिनिधि द्वारा सह-अध्यक्षता की जाती है।
आगे की राह:
- नियामक केवल लाइसेंस प्राप्त डीलरों और बीज कंपनियों के लिये अपने चेकिंग/विनियमन को सीमित करते हैं, जबकि HT बीज बिक्री की अवैध गतिविधि ज़्यादातर असंगठित और ‘फ्लाई-बाय-नाइट’ ऑपरेटरों द्वारा की जाती है।
- इस प्रकार उन्हें पकड़ने और मज़बूत दंडात्मक कार्रवाई करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- केंद्र और राज्य सरकार दोनों की सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है। केंद्र ने इस वेरिएंट पर प्रतिबंध लगाने की नीति बनाई है, लेकिन राज्य सरकारों को केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिये।
- पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन स्वतंत्र पर्यावरणविदों द्वारा किया जाना चाहिये, क्योंकि किसान पारिस्थितिकी और स्वास्थ्य पर जीएम फसलों के दीर्घकालिक प्रभाव का आकलन नहीं कर सकते हैं।
स्रोत- द हिंदू
सामाजिक न्याय
दिव्यांगता प्रारंभिक हस्तक्षेप केंद्र
प्रिलिम्स के लिये:सुगम्य भारत अभियान, दिव्यांगतामेन्स के लिये:दिव्यांगों के लिये की गई पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) ने किसी जोखिम में रहने वाले या दिव्यांग बच्चों और शिशुओं को सहायता प्रदान करने के लिये देश भर में 14 क्रॉस-डिसेबिलिटी अर्ली इंटरवेंशन सेंटर लॉन्च (Cross-Disability Early Intervention Centres) किये हैं।
दिव्यांगता:
- दिव्यांगता एक व्यापक पद है, जिसमें असमर्थता, बाधित शारीरिक गतिविधियाँ और सामाजिक भागीदारी में असमर्थता शामिल हैं।
- असमर्थता शारीरिक कार्य करने या संरचना में किसी समस्या से संबंधित है;
- बाधित शारीरिक गतिविधियों का आशय किसी कार्य या क्रिया को निष्पादित करने में किसी व्यक्ति के समक्ष आने वाली कठिनाइयों से है;
- सामाजिक भागीदारी में असमर्थता का अर्थ एक व्यक्ति द्वारा जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में शामिल होने में अनुभव की जाने वाली समस्या से है।
- दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन दिव्यांग व्यक्तियों के व्यापक वर्गीकरण को अपनाता है और पुष्टि करता है कि सभी प्रकार के दिव्यांग व्यक्तियों को सभी मानवाधिकारों तथा मौलिक स्वतंत्रता का लाभ मिलना चाहिये।
- भारत ने इस कन्वेंशन की पुष्टि की है और ‘दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016‘ को अधिनियमित किया है।
प्रमुख बिंदु:
संदर्भ:
- इन केंद्रों पर दिव्यांगता स्क्रीनिंग व पहचान, पुनर्वास, परामर्श, चिकित्सीय सेवाएँ, माता-पिता की काउंसलिंग और प्रशिक्षण के साथ-साथ सहकर्मी परामर्श आदि सेवाएँ प्रदान की जाएंगी।
- ये केंद्र स्कूल से संबंधित तैयारी पर भी ध्यान देंगे।
आवश्यकता:
- 2011 का जनगणना परिदृश्य:
- 0-6 वर्ष के आयु वर्ग में 20 लाख से अधिक दिव्यांग बच्चे हैं, जो दृष्टिबाधित, श्रवण बाधित, चलन में अक्षमता आदि श्रेणियों से संबंधित हैं।
- इसका अर्थ है कि इस आयु वर्ग के लगभग 7% बच्चे किसी-न-किसी रूप में दिव्यांगता से पीड़ित हैं।
- संख्या में अपेक्षित वृद्धि:
- ऐसे बच्चों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना है क्योंकि दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम 2016 के अनुसार दिव्यांगों के प्रकारों की संख्या 7 से बढ़कर 21 हो गई है।
- 0-6 वर्ष एक महत्त्वपूर्ण चरण है:
- प्रारंभिक बचपन (0-6 वर्ष) मस्तिष्क के विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण चरण होता है। ऐसे शिशु और छोटे बच्चे जो किसी जोखिम में हैं या दिव्यांगता या जिनका विकास देरी से हुआ है, उनके परिवारों को उनके विकास, कल्याण तथा पारिवारिक एवं सामुदायिक जीवन में भागीदारी में मदद करने के लिये प्रारंभिक हस्तक्षेप विशेष सहायता और सेवाएँ प्रदान कर सकता है।
- यह बेहतर भविष्य के साथ-साथ स्वतंत्र/कम आश्रित जीवन द्वारा आर्थिक बोझ को कम हो सकता है।
दिव्यांगों के लिये अन्य पहलें:
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016: दिव्यांगता के प्रकारों की संख्या में वृद्धि के अलावा, यह दिव्यांगजन के लिये सरकारी नौकरियों में 3% से 4% और उच्च शिक्षा संस्थानों में 3% से 5% तक आरक्षण सुनिश्चित करता है।
- सुगम्य भारत अभियान: यह दिव्यांगजनों (PwDs) के लिये बाधा रहित और सुखद/अनुकूल वातावरण तैयार करता है।
- ऑनलाइन मोड में अद्वितीय अक्षमता पहचान (Unique Disability ID- UDID) पोर्टल: इस परियोजना को राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांगजनों का डेटाबेस तैयार करने और प्रत्येक दिव्यांग (PwDs) को एक विशिष्ट अद्वितीय अक्षमता पहचान पत्र जारी करने के उद्देश्य से कार्यान्वित किया जा रहा है।
- दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना: इस योजना के तहत NGOs को विशेष स्कूल, व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र, समुदाय-आधारित पुनर्वास, प्री-स्कूल और प्रारंभिक हस्तक्षेप जैसी विभिन्न सेवाएँ प्रदान करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- सहायक यंत्रों/उपकरणों की खरीद/फिटिंग के लिये विकलांग व्यक्तियों हेतु सहायता योजना (ADIP): दिव्यांग व्यक्तियों को उनकी पहुँच के भीतर उपयुक्त, टिकाऊ, वैज्ञानिक रूप से निर्मित, आधुनिक, मानक सहायता और उपकरणों को खरीदने में उनकी सहायता करना है।
- दिव्यांग छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप: दिव्यांग छात्रों के लिये उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसरों को बढ़ाने हेतु प्रतिवर्ष 200 फैलोशिप प्रदान की जाती है।
- सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु-दिव्यांगता से पीड़ित व्यक्तियों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय न्यास (National Trust) की योजनाएँ।
आगे की राह:
- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जोखिम वाले मामलों की पहचान करना एक महत्त्वपूर्ण पहलू है और उनके माता-पिता को समय पर आवश्यक सहायता एवं परामर्श प्रदान करना भी महत्त्वपूर्ण है।
- एक अनुसंधान के अनुसार, स्वस्थ विकास सुनिश्चित करने के लिये बच्चे के जीवन के शुरुआती 1000 दिन महत्त्वपूर्ण होते हैं, इसलिये कम उम्र में जोखिम के मामलों की पहचान करना बहुत महत्त्वपूर्ण है ताकि उचित उपायों के माध्यम से दिव्यांगता की गंभीरता को कम किया जा सके।
स्रोत: द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
एकीकृत ट्राइसर्विस थिएटर कमांड
- सामान्य अध्ययन-II
- सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप
- सामान्य अध्ययन-III
- विभिन्न सुरक्षा बल और एजेंसियाँ तथा उनके अधिदेश
- सुरक्षा चुनौतियाँ और सीमा क्षेत्रों में उनका प्रबंधन
प्रिलिम्स के लियेएकीकृत ट्राइसर्विस थिएटर कमांड, शेकातकर समिति मेन्स के लियेएकीकृत थिएटर कमांड की आवश्यकता के पक्ष और विपक्ष संबंधी तर्क |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एकीकृत ट्राइसर्विस थिएटर कमांड के निर्माण पर विचार-विमर्श के लिये एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है।
- यह समिति सभी मुद्दों की जाँच करेगी और सुरक्षा मामले पर मंत्रिमंडलीय समिति को एक औपचारिक नोट प्रस्तुत करने से पूर्व एकीकृत ट्राइसर्विस थिएटर कमांड के निर्णय से संबंधित भविष्य की कार्यवाहियों का निर्धारण करेगी।
प्रमुख बिंदु
समिति के संबंध
- अर्द्ध-सैनिक बलों (जो कि वर्तमान में गृह मंत्रालय के अधीन हैं) को थिएटर कमांड के दायरे में लाने और एकीकरण की प्रक्रिया के कारण उत्पन्न होने वाले वित्तीय प्रभावों जैसे विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श करने हेतु इस समिति का गठन करना काफी महत्त्वपूर्ण है।
- प्रस्तावित वायु रक्षा कमान के तहत वायु सैन्य संपत्तियों को एकीकृत करने की योजना बना रही है, वहीं मैरीटाइम थिएटर कमांड के तहत नौसेना, तटरक्षक बल के साथ-साथ सेना और वायु सेना के समग्र तटीय संरचनाओं की सभी संपत्तियों को एक साथ लाने की योजना बनाई गई है।
- थल सेना की उत्तरी कमान और पश्चिमी कमान को 2-5 थिएटर कमांड में बदल दिया जाएगा।
एकीकृत थिएटर कमांड
- एकीकृत थियेटर कमांड का आशय सुरक्षा और रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण किसी भौगोलिक क्षेत्र के लिये एक ही कमान के अधीन तीनों सशस्त्र सेनाओं (थल सेना, वायुसेना और नौसेना) के एकीकृत कमांड से है।
- इन बलों (थल सेना, वायुसेना और नौसेना) के कमांडर अपनी क्षमताओं के साथ किसी भी विपरीत परिस्थिति में सभी संसाधनों को वहन करने में सक्षम होंगे।
- एकीकृत थिएटर कमांड किसी एक विशिष्ट सेवा के प्रति जवाबदेह नहीं होगा।
- तीनों बलों का एकीकरण संसाधनों के दोहराव को कम करेगा। एक सेवा के तहत उपलब्ध संसाधन को अन्य सेवाओं में भी उपयोग किया जा सकेगा।
- शेकातकर समिति (वर्ष 2015) ने तीन 3 एकीकृत थिएटर कमांड बनाने की सिफारिश की है – चीन सीमा हेतु उत्तरी कमांड, पाकिस्तान सीमा हेतु पश्चिमी कमांड और समुद्री क्षेत्र हेतु दक्षिणी कमांड।
एकीकरण के पक्ष में तर्क
- एकीकरण के पश्चात् थिएटर कमांडर अपने कार्यों के लिये किसी भी विशिष्ट सेवा के प्रति जवाबदेह नहीं होगा और वह अपनी कमांड के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम एक ‘संयुक्त युद्धक बल’ के रूप में विकसित एवं प्रशिक्षित होने हेतु स्वतंत्र होगा।
- अपने ऑपरेशनों को पूरा करने के लिये आवश्यक संसाधनों को थियेटर कमांडर के नियंत्रण में ही रखा जाएगा ताकि ऑपरेशन के दौरान उसे किसी पर निर्भर न रहना पड़े।
- यह भारत की वर्तमान ‘सेवा-विशिष्ट कमांड प्रणाली’, जिसमें पूरे देश में तीनों सैन्य सेवाओं (थल सेना, वायु सेना और नौसेना) की अपनी-अपनी कमांड होती है, के पूर्णतः विपरीत है। युद्ध की स्थिति में प्रत्येक सेवा प्रमुख से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी सेवा के संचालन को अलग-अलग कमांड के माध्यम से नियंत्रित करें, जबकि वे संयुक्त रूप से काम कते हैं।
एकीकरण के विपक्ष में तर्क:
- वास्तव में युद्ध के दौरान ऐसा कोई अवसर नहीं आया जब तीनों सेनाओं ने सराहनीय सहयोग के साथ कार्य नहीं किया हो।
- बढ़ते संचार नेटवर्क ने तीनों सैन्य सेवाओं के बीच संचार को आसान बनाया है, जिसके तहत स्थानिक दूरी पर विचार किये बिना योजना बनाई जा सकती है, ऐसे में नवीन संगठन की कोई आवश्यकता नहीं है।
- एकीकृत बल कमांडर के डोमेन ज्ञान का उनके कमांड के तहत अन्य दो सेवा घटकों के संबंध में सीमित होने की संभावना है, जिससे उन्हें सबसे उपयुक्त तरीके से और उचित समय पर नियोजित करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
वर्तमान स्थिति:
- भारतीय सशस्त्र बलों के पास वर्तमान में 17 कमांड हैं। थल सेना और वायु सेना प्रत्येक में 7 और नौसेना के पास 3 कमांड हैं।
- प्रत्येक कमांड का नेतृत्व एक 4-स्टार (4-star) रैंक का सैन्य अधिकारी करता है।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में एक संयुक्त कमान है।
- यह भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पोर्ट ब्लेयर में स्थित भारतीय सशस्त्र बलों की पहली त्रि-सेवा थिएटर कमान है।
- अन्य त्रि-सेवा कमान जैसे कि सामरिक बल कमान (SFC), देश की परमाणु संपत्ति के वितरण और परिचालन नियंत्रण की देखभाल करती है।
हाल के विकास:
- चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) की नियुक्ति और सैन्य मामलों के विभाग (DMA) का निर्माण रक्षा बलों के एकीकरण और उन्नति की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं।
- CDS: वर्ष 1999 में कारगिल समीक्षा समिति के सुझाव पर स्थापित यह सरकार का एकल-बिंदु सैन्य सलाहकार पद है।
- सैन्य मामलों का विभाग (DMA): केवल सैन्य मामलों से संबंधित कार्य ही DMA के दायरे में आएंगे। इससे पहले ये कार्य रक्षा विभाग (DoD) के जनादेश के तहत थे।
- चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने मुंबई में तीसरे संयुक्त लॉजिस्टिक्स नोड (JLN) का संचालन किया।
- LNs सशस्त्र बलों को उनके छोटे हथियारों जैसे- गोला-बारूद, राशन, ईंधन, जनरल स्टोर,विमानन वस्त्र, पुर्जों और इंजीनियरिंग सहायता के लिये संयुक्त लॉजिस्टिक्स कवर प्रदान करेंगे ताकि उनके परिचालन प्रयासों को समन्वित किया जा सके
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
एंटोनियो गुटेरेस: दूसरे कार्यकाल के लिये संयुक्त राष्ट्र महासचिव
प्रिलिम्स के लियेसंयुक्त राष्ट्र महासचिव, संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठनमेन्स के लिये महासचिव की नियुक्ति और उनका कार्यकाल |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एंटोनियो गुटेरेस (Antonio Guterres) को 1 जनवरी, 2022 से 31 दिसंबर, 2026 तक के लिये दूसरे कार्यकाल हेतु नौवें संयुक्त राष्ट्र महासचिव (UNSG) के रूप में नियुक्त किया।
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र प्रमुख के रूप में गुटेरेस के फिर से चुनाव किये जाने पर अपना समर्थन व्यक्त किया था।
प्रमुख बिंदु
एंटोनियो गुटेरेस के बारे में:
- गुटेरेस ने 1 जनवरी, 2017 को पद की शपथ ली और उनका पहला कार्यकाल 31 दिसंबर, 2021 को समाप्त हो रहा है।
- गुटेरेस ने जून 2005 से दिसंबर 2015 तक (एक दशक) शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया।
- वह पुर्तगाल के पूर्व प्रधानमंत्री रहे।
नियुक्ति:
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत महासचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा की जाती है।
- प्रत्येक महासचिव के पास दूसरे कार्यकाल का विकल्प होता है इसके लिये उसे सदस्य राज्यों का पर्याप्त समर्थन मामला आवश्यक है।
- गुटेरेस को एक संशोधित चयन प्रक्रिया द्वारा चुना गया जिसमें महासभा में एक सार्वजनिक अनौपचारिक संवाद सत्र शामिल था, इसमें नागरिक समाज के प्रतिनिधि शामिल थे, जिसका उद्देश्य पारदर्शिता और समावेशिता सुनिश्चित करना था।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर:
- संयुक्त राष्ट्र का चार्टर संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक दस्तावेज है। इस पर 26 जून, 1945 को सैन फ्राँसिस्को में अंतर्राष्ट्रीय संगठन के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के समापन के अवसर पर हस्ताक्षर किये गए और 24 अक्तूबर, 1945 को यह लागू हुआ।
- संयुक्त राष्ट्र अपने अद्वितीय अंतर्राष्ट्रीय चरित्र (International Character) और अपने चार्टर में निहित शक्तियों के कारण कई तरह के मुद्दों पर कार्रवाई कर सकता है, जिसे एक अंतर्राष्ट्रीय संधि माना जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत साधन है और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्य इससे बँधे हैं। संयुक्त राष्ट्र चार्टर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रमुख सिद्धांतों को संहिताबद्ध करता है, जिसमें राज्यों की संप्रभु समानता से लेकर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में बल के प्रयोग पर प्रतिबंध शामिल है।
UNGA के बारे में:
- महासभा संयुक्त राष्ट्र के मुख्य विचार-विमर्श, नीति निर्माण और प्रतिनिधि अंग के रूप में एक केंद्रीय स्थान रखती है।
- संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्यों से बना यह चार्टर कवर किये गए अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के पूर्ण स्पेक्ट्रम की बहुपक्षीय चर्चा के लिये एक अनूठा मंच प्रदान करता है।
- यह मानक-निर्धारण और अंतर्राष्ट्रीय कानून के संहिताकरण की प्रक्रिया में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद:
- वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा स्थापित सुरक्षा परिषद के पास अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है।
- सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य राज्य हैं।
- पाँच स्थायी सदस्य हैं: संयुक्त राज्य अमेरिका, रूसी संघ, फ्राँस, चीन और यूनाइटेड किंगडम।
- सुरक्षा परिषद के गैर-स्थायी सदस्य दो वर्ष की अवधि के लिये चुने जाते हैं। हाल ही में भारत का चुनाव हुआ है।
- सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य का एक मत होता है। मामले पर सुरक्षा परिषद का निर्णय स्थायी सदस्यों के सहमति मतों सहित नौ सदस्यों के सकारात्मक मत द्वारा किया जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र का कोई भी सदस्य जो सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं है, बिना वोट के सुरक्षा परिषद के समक्ष लाए गए किसी भी प्रश्न की चर्चा में भाग ले सकता है, जब भी सुरक्षा परिषद को लगता है कि उस सदस्य के हित विशेष रूप से प्रभावित हैं।
संयुक्त राष्ट्र से संबंधित चुनौतियाँ:
- UNSC द्वारा प्रयोग किये जाने वाले वीटो पावर पर UNGA का कोई नियंत्रण नहीं है और यह UNSC के स्थायी सदस्यों के खिलाफ कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं कर सकता है।
- 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद अब तक संयुक्त राष्ट्र की सबसे शक्तिशाली शाखा है। हालाँकि वीटो पावर का इस्तेमाल पाँच स्थायी देशों द्वारा अपने और अपने सहयोगियों के रणनीतिक हितों की पूर्ति के लिये किया जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र का चार्टर महासचिव, संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारी के कर्तव्यों को परिभाषित करने में अस्पष्ट है।
- हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अमेरिका द्वारा कोविड-19 महामारी के संबंध में गलत जानकारी के कारण आलोचना की गई और बाद में उसने WHO को अपने वित्तीय योगदान को निलंबित कर दिया।
- साथ ही WHO पर अमेरिकी सरकार का दबाव है कि वह अमेरिकी फार्मा कंपनियों के हितों के पक्ष में एक समान दृष्टिकोण अपनाए।
- WHO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
संयुक्त राष्ट्र
स्थापना:
- संयुक्त राष्ट्र (UN) वर्ष 1945 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है।
सदस्य:
- वर्तमान में इसमें शामिल सदस्य राष्ट्रों की संख्या 193 है।
- भारत संयुक्त राष्ट्र का एक चार्टर सदस्य है और इसकी सभी विशिष्ट एजेंसियों और संगठनों में भाग लेता है।
गतिविधियाँ:
- इसकी गतिविधियों में अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना, मानवाधिकारों की रक्षा करना, मानवीय सहायता प्रदान करना, सतत् विकास को बढ़ावा देना और अंतर्राष्ट्रीय कानून को बनाए रखना शामिल है।
संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अंग हैं:
- महासभा (The General Assembly)
- सुरक्षा परिषद (The Security Council)
- संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (The Economic and Social Council)
- संयुक्त राष्ट्र न्यास परिषद (The Trusteeship Council)
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (The International Court of Justice)
- संयुक्त राष्ट्र सचिवालय (The UN Secretariat)
फंड और कार्यक्रम:
- संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ)
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UN Environment)
- संयुक्त राष्ट्र मानव अधिवासन कार्यक्रम (UN-Habitat)
- विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP)
आगे की राह
- संयुक्त राष्ट्र को बहुपक्षवाद के अधिक समावेशी, नेटवर्क एवं प्रभावी रूपों के लिये एक उत्प्रेरक और एक मंच के रूप में कार्य करना चाहिये।
- वर्तमान स्थिति में एक बेहतर दुनिया और सभी के भविष्य को बदलने की शक्ति हर जगह हर किसी पर निर्भर करती है और इसे तभी सफलतापूर्वक किया जा सकता है जब मानवता और ग्रह के लाभ के लिये एक साझा एजेंडा पर कार्य करने का प्रयास किया जाए।